महात्मा बुद्ध का असली नाम सिद्धार्थ गौतम था। वे छठी शताब्दी ईसा पूर्व में जन्मे एक राजकुमार थे। उन्होंने दुख, जन्म-मरण और संसार के कष्टों का हल खोजने के लिए अपना घर, परिवार और राजपाट छोड़ दिया। ज्ञान प्राप्ति के बाद वे “बुद्ध” कहलाए, जिसका अर्थ है “जाग्रत व्यक्ति”। उनकी शिक्षाओं से बौद्ध धर्म की स्थापना हुई। आज भी करोड़ों लोग उनकी शिक्षाओं का पालन करते हैं।
महात्मा बुद्ध की करुणा – एक प्रेरक कहानी
बहुत समय पहले की बात है। महात्मा बुद्ध अपने शिष्यों के साथ एक गाँव में पहुँचे। गाँव के लोग बुद्ध की शिक्षा सुनने के लिए इकठ्ठा हुए। सब बड़े प्रेम और श्रद्धा से उनका स्वागत करने लगे।
लेकिन उस गाँव में एक व्यक्ति था जो बुद्ध से बहुत ईर्ष्या करता था। वह गुस्से में भरकर बुद्ध के पास आया और उनके सामने अपशब्द कहने लगा। उसने कहा –
“तुम पाखंडी हो! तुम्हारी बातें झूठी हैं! तुम लोगों को बहकाते हो!”
बुद्ध शांत खड़े सब सुनते रहे। उनका चेहरा बिल्कुल शांत और गंभीर था। वह व्यक्ति और भी अधिक चिल्लाने लगा। भीड़ स्तब्ध थी। किसी ने सोचा – बुद्ध अब क्रोधित हो जाएंगे।
लेकिन बुद्ध ने बहुत शांत स्वर में कहा –
“भाई, अगर कोई किसी को उपहार दे और वह न ले, तो वह उपहार किसका रहेगा?”
वह व्यक्ति चौंक गया। उसने कहा –
“जिसने दिया उसका ही रहेगा।”
बुद्ध मुस्कुराए और बोले –
“तुम मुझे गाली दे रहे हो, लेकिन मैं उसे स्वीकार नहीं करता। यह तुम्हारा है, तुम्हारे पास ही रहेगा।”
यह सुनकर वह व्यक्ति अवाक रह गया। उसकी आँखों में आँसू आ गए। उसने बुद्ध के चरणों में गिरकर माफी मांगी। बुद्ध ने उसके सिर पर हाथ रखा और कहा –
“घृणा से घृणा नहीं मिटती। प्रेम से ही घृणा मिटती है। यही सनातन सत्य है।”
गाँव के लोग भी यह सुनकर बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने समझ लिया कि क्रोध और द्वेष का उत्तर शांत चित्त और प्रेम से देना चाहिए।
शिक्षा (Moral):
क्रोध और नफरत का जवाब क्रोध से नहीं, प्रेम और धैर्य से देना चाहिए। यही सच्चा धर्म है।
"महात्मा बुद्ध की करुणा Mahatma Budha"
Reviewed by Last News Update
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July 17, 2025
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